एड्स का रोग - निदान एवं उपचार (Diagnosis and treatment of AIDS in hindi)
HIV के संक्रमण की पहचान अर्थात् रोग निदान वैसे तो इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा वीर्य, योनिस्राव, लार, दुग्ध, रुधिर, आदि तरल पदार्थों में वाइरस की उपस्थिति से की जा सकती है, परन्तु वैज्ञानिकों ने इसकी सरल, रासायनिक जाँच की विधियों का आविष्कार कर लिया है। संक्रमित T, लिम्फोसाइट्स में, HIV के कुछ जीन्स के नियन्त्रण में ,
कुछ ऐसी प्रतिजन प्रोटीन्स (antigenic proteins) संश्लेषित होकर रुधिर में मुक्त होती हैं जिन्हें निष्क्रिय करने के लिए शरीर के प्रतिरक्षण तन्त्र में उपयुक्त प्रतिरक्षी (antibodies) प्रोटीन्स बनती हैं। रुधिर में इन्हीं प्रतिरक्षी प्रोटीन्स की उपस्थिति अनुपस्थिति की सीरमी जाँच (serological test) द्वारा पता लगाकर HIV का संक्रमण होने न होने का निर्धारण किया जाता है।
वैज्ञानिकों ने इन प्रतिरक्षियों की सीरमी जाँच के लिए ELISA किट (एन्जाइम सहलग्न प्रतिरोधी शोषक जाँच किट – Enzyme Linked Immuno Sorbent Assay Kit) बनाया है। इस जाँच में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका क्षारीय फॉस्फेटेज (alkaline phosphatase) एन्जाइम की होती है।
वैज्ञानिकों ने पश्चिमी ब्लॉट (Western Blot) के नाम से एक ऐसा किट भी बनाया है जिसका उपयोग एलिसा टेस्ट की पुष्टि करने के लिए किया जाता है। हाल ही में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 20 मिनट में और चीनी वैज्ञानिकों ने 5 मिनट में HIV तथा एड्स की जाँच कर लेने वाले किट बनाने में सफलता का दावा किया है।
हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय के जैव रसायन विभाग के डॉ० विजय चौधरी ने नग्न दृष्टि अभिसंश्लेषण (Naked Eye Vision Agglutination) नाम से एड्स के लिए एक सस्ती और शीघ्रगामी जाँच विधि के आविष्कार का दावा किया है।
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि, अभी तक एड्स के प्रभावशाली उपचार की विधि का विकास नहीं हो पाया है। इसीलिए, संसारभर में काफी लोगों की इस रोग के कारण मृत्यु होती रहती है। लगभग तीस औषधियों में एड्स के इलाज की क्षमता का अनुमान लगाया गया है। इनमें जाइडोवुडाइन, अर्थात् ऐजीडोथाइमिडीन (Zidovudine, i.e..Andothymidine-AZT), डिडानोसीन ( Didanosine), स्टैवूडीन (Stavudine), डेलाविरडीन (Delavirdine). नेविरापीन (Nevirapine), लैमिवुडीन (Lamivudine), लाइडोवुडीन (Lidovudine), आदि औषधियाँ रोग का उपचार तो नहीं कर सकतीं, परन्तु HIV के प्रतिवर्ती ट्रान्सक्रिप्टेज (reverse transcriptase) एन्जाइम को निष्क्रिय करके HIV के प्रचुरोद्भवन को रोक देती हैं जिससे कि रोग की वृद्धि नहीं होती।
इसी प्रकार, इन्डिनाबिर (Indinavir), नॉरबिर (Narvir) तथा नेल्फिनाविर (Nelfinavir) नामक औषधियाँ लिम्फोसाइट्स में HIV के न्यूक्लिओकैप्सिड्स के संयोजन को रोककर रोग की वृद्धि पर रोक लगाती हैं।
चीन में जड़ी-बूटियों से तैयार की गई औषधियाँ - XQ-9302 और ऐम्फोटेरिसीन B (Amphotericine B) एड्स की सम्भावित औषधियाँ हैं। चीन में ही सेना के चिकित्सकीय वैज्ञानिकों ने डिकाफीक्विनिक (Dicafeiquinic) नामक औषधि बनाई है। हाल ही में कुछ अमेरिकी वैज्ञानिकों ने HIV की आनुवंशिक प्रवृत्ति बदलकर एड्स की रोकथाम ही नहीं की वरन् HIV का उपयोग कुछ अन्य आनुवंशिकी रोगों को दूर करने में किए जाने की सम्भावना व्यक्त की है।
विभिन्न देशों में एड्स की जाँच तथा इसके सम्भावित उपचार की व्यापक प्रशासनिक सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जा रही हैं। चीन के कुनमिंग वनस्पति संस्थान (Kunming Institute of Botany) के वैज्ञानिकों ने जड़ी-बूटियों से एड्स की एक अन्य दवा बनाने का दावा किया है और इसे एसएच (SH) का नाम दिया है। इसी प्रकार, कुछ औषधि निर्माताओं ने 1-20 नामक औषधि का आविष्कार करके दावा किया है कि यह औषधि HIV को T, लिम्फोसाइट में प्रवेश करने से रोक देती है।
हाल ही में भारतीय औषधि अनुसन्धान परिषद् (Indian Council of Medical Research) के तत्वाधान में,
राष्ट्रीय एड्स अनुसन्धान संस्थान (National AIDS Research Institute), पुणे में एड्स की रोकथाम के लिए एक टीके (vaccine) का आविष्कार किया गया है और इसके प्रभाव का परीक्षण किया जा रहा है। इस टीके को tgAACO9 का नाम दिया गया है।
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