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पीयूष ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन |pituitary gland hormones in hindi

 पीयूष ग्रंथि से स्रावित हार्मोन |pituitary gland hormones in hindi 

 पीयूष ग्रंथि की अग्र पाली से स्रावित होने वाले हार्मोन -

1. सोमैटोट्रोपिन  हार्मोन अथवा वृद्धि हार्मोन (somatotropin  hormone( STH )or growth hormone(GH ) )

यह शरीर के वृद्धि को प्रभावित करता है यह ऊतकों के छय को रोकता है यह हार्मोन कोशिका विभाजन हड्डियों व् पेशियों के विकाश तथा संयोजी ऊतक वृद्धि को प्रोत्साहित करता है यकृत में एमिनो अम्लों से ग्लूकोज़ का संस्लेषण तथा ग्लूकोज़ से ग्लूकोजन की क्रिया को बढ़ता है तथा वसा के विघटन को प्रेरित करता है। 
ग्रोथ हार्मोन की कमी व् अधिक से निम्नलिखित रोग होता है -

(a )बौनापन

बल कल में ग्रोथ हार्मोन के कम स्राव से व्यक्ति बौना रह जाता है इस प्रकार के व्यक्ति नपुंसक होते है 

(b )अग्राविकायता (acromegaly )

वृद्धि क।ल के बाद ग्रोथ हार्मोन की अधिकता से गोरिल्ला के समान कुरूप भीमकाय व्यक्ति बनते है क्योकी हड्डियों की लम्बाई में वृद्धि सम्भव नहीं होती है तो शरीर की लम्बाई में नहीं बढ़ता अतः हाथ पैर चेहरे के कुछ भाग जबड़े आदि अधिक लम्बे हो जाते है हड्डिया मोटाई में बढ़ते है जिससे शरीर भद्दे हो जाते है आँखों के ऊपर गालो की हड्डीया उभर आती है इस अवस्था को एक्रोमेगली कहते है ।

2. गोनडोट्रोपिक हार्मोन (gonadotoropic hormone )

ये हार्मोन नर में वृषण एवं मादा में अण्डाशय को उत्तेजित करते है ये लैंगिक परिपक्वता के लिए आवश्यक है ये दो प्रकार के होता है ।

(a ) फॉलिकल उत्तेजक हार्मोन (stimulating harmons (FSH ) )

यह स्त्रियों में अण्डाशय के फॉलिकल की वृद्धि तथा अण्डो के परिपक्वन को प्रोत्साहित करता है और मादा हार्मोन एस्ट्रोजन के स्राव को प्रेरित करता है पुरषो में वृषण की शुक्रजन नलिकाओं की वृद्धि शुक्राणु जनन या  शुक्राणुओं का निर्माण इसी हार्मोन के द्वारा नियन्त्रित होता है। 

(b )ल्युटनाइजिंग हार्मोन (luteinging hormone (LH ) )

स्त्रियों में यह हार्मोन ग्रफियन फॉलिकल के परिपक्वन तथा अण्डोत्सर्ग के क्रिया को प्रेरित करता है।,यह ओवेरियन फॉलिकल की थिकाइनटर्ना कोशिकाओं से मादा हार्मोन स्ट्रोजन के स्राव को प्रेरित करता है। 

पुरषो में न्युटनाइजिंग हार्मोन वृषण की अंतरालकोशिकाओ द्वार नर हार्मोन एण्ड्रोजन्स के स्राव को प्रेरित करता है जिसके द्वारा अतिरिक्त जनन अंगो द्धितीयक लैंगिक लक्षणो का नियमन होता है। 

3. एड्रेनोकॉर्टिकोट्रोपिक हार्मोन (adrenocorticotropic hormone )

यह एड्रीनल ग्रन्थी के कॉर्टिकल भाग से हार्मोन की स्राव को प्रभावित करता है इसकी कमी के कारण एड्रिनल ग्रन्थिया नष्ट हो जाती है तथा इसकी तथा इसकी अधिकता से रीनल करटिक्स अधिक हो जाता है। 

4. थाइरोट्रोपिन  हार्मोन (thyrotropin  hormone )

थाइरोट्रोपिक हार्मोन थाइराइड ग्रन्थि की वृद्धि एवं क्रिया को नियंत्रित करता हैं। 

5. लैक्टोजेनिक हार्मोन (lactogenic hormones )

इसका स्राव स्त्रियों में गर्भ काल के समय बढ़ जाता है तथा शिशुओं में दुगध निर्माण एवं स्राव को प्रेरित करता है इसकी कमी से मादा में दुग्ध निर्माण नहीं होता है। 

6. डायबेटोजेनिक हार्मोन (diabetogenic hormone)

यह कार्बोहाइड्रेट उपापचय को प्रभावित करता है इसका प्रभाव प्रोटीन एवं वसा पर भी होता है इसका प्रभाव इन्सुलिन के विपरित होता है। 


पीयूष ग्रंथि के मध्य पिण्ड से स्रावित हार्मोन 

यह पिट्यूटरी ग्रन्थि का एक पतला सा भाग है इससे स्रावित होने वाले हार्मोन निम्न है - 

मिलैनोसाइट प्रेरक हार्मोन(melanocyte stimulating hormone (MSH ) )

इसका स्राव pituitary के मध्य पिण्ड से होने के कारण को  इण्टर मिडिन हार्मोन भी कहते है पक्षियों तथा निम्न कशेरुकी प्राणीयो में यह हार्मोन त्वच्चा की विलेनिन कोशिकाओं में विलेलिन रंग के कणो को फैलाकर त्वच्चा के रंग को गहरा करता है। 

 पीयूष ग्रंथि के पश्चपालिक से स्रावित हार्मोन 

इससे दो हार्मोन स्रावित होते है -

 (a ) वेसोप्रेसिन (vasopressin  (ADH ) )

ADH  वृक्क की वाहनियों एवं कोशिकाओं में जल अवशोषण को बढ़ा कर मूत्र की मात्रा को कम करता है इसी कारण इसे मूत्र रोधी या antidiretic कहते है। इस हार्मोन  की कमी होने से मूत्र के साथ पानी की अधिक मात्रा निकलने लगती है जिससे मूत्र पतला तथा रुधिर गारा हो जाता है ,इस रोग को डायबेटीज इन्सिपिसड़स कहते है। इससे बार बार पेशाब आता है और और शरीर से अत्यधिक पानी निकल जाता है। 

(b )आक्सीटोसिन (oxytocin or pitocin )

यह गर्भ अवस्था में अंतिम समय में गर्भशय की दीवार एवं पेशियों के संकुचन को प्रेरित करता है अर्थात पर्श्व के पश्चात गर्भाशय के सिकुड़न को प्रेरित करता है पर्श्व के बाद यह स्तनधारियों में दुग्ध स्राव को उत्तेजित करता हैं। 

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